Saturday, June 24, 2017

वाकिफ़

दुनिया कहती है तू निराकार हैं

पर मैं कहता हूँ मेरा हृदय ही तेरा आकार हैं

अहंकार नहीं यह जज्बात हैं

क्योंकि इसकी धड़कनों में

तेरी ही रूह का बास हैं

आत्मा से परमात्मा के मिलन का

यही एक सच्चा मार्ग हैं

ना मैं तपस्वी हूँ

ना ही मैं दानी हूँ

फिर भी संयम बल से ज्ञानी हूँ

इसीलिये

विधमान हैं तू इस दिल में

इस ज्ञान से मैं भी वाकिफ़ हूँ







2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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