Sunday, January 15, 2017

लफ्जों की बौछार

लफ़्ज उनके थे लव मेरे थे

रुमानियत भरी वो शाम थी

चाँद जमीं पे उतर आया था जैसे

हर तरफ़ सिर्फ़ चाँदनी की ही सौग़ात थी

बिन कहे उस पल वो सब कह गयी

लवों पे मेरे लफ़्ज अपने छोड़ गयी

लवों से लफ़्ज़ों का मिलन हुआ इस कदर

ना अब मैं था ना कोई दूजी कहानी थी

हर महफ़िल की रौनक

बस मेरे लवों पे सजी

उनके ही लफ्जों की बौछार थी  

उनके ही लफ्जों की बौछार थी

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