Wednesday, December 21, 2016

इस पल

बिखरने दो जज़्बात

हँसने दो क़ायनात

इस पल ही सिर्फ़ जिंदगानी हैं

बाकी सब आँसुओं का खारा पानी हैं

दिल का आसमां भी

थोड़ा इतरायेगा थोड़ा मचलायेगा

पर जब खुल के बरसने लगेंगे जज़्बात

जैसे धुप सुहानी नयी रंगत लिए

छा जायेगी चहरे पर मधुर मुस्कान

उस पल को ही बस छूना हैं

जज्बातों की इस महफ़िल में

अपना खुशनुमा पल तलाशना हैं

भूला सारी क़ायनात को

बस एक इस पल को ही जीना हैं

बस एक इस पल को ही जीना हैं


1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-12-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2564 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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