Friday, October 21, 2016

हसरतें

आरजू जिसकी कभी की नहीं

हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी

दिल को ए पता ही ना चला

परिंदों सी परवाज़ भरती जिंदगानी

अटखेलियाँ करती साजों से

कब इंद्रधनुषी रंगों में रंग गयी

दिल को ए पता ही ना चला

वो चाँद कब गलहार बन

जिंदगी का हमसफ़र बन गया

दिल को ए पता ही ना चला

हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी

दिल को ए पता ही ना चला

Saturday, October 8, 2016

अधूरी तस्वीर

तस्वीर मेरी अधूरी थी

रंगों की तेरी उसमें कमी थी

दर्पण भी नजरें चुरा लेता था

आज़माता खुद को

उसके सामने जब मैं 

फिर भी

ढूंढता फिरा हर उस सुहाने पल को 

कभी तो

रंग लूँ तस्वीर अपनी तेरे रंगों से मैं

खोया रह गया बस इसी धुन मैं

चुपके से चुरा कोई ओर ले गया

ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में

ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में

अधूरी तस्वीर

तस्वीर मेरी अधूरी थी

रंगों की तेरी उसमें कमी थी

दर्पण भी नजरें चुरा लेता था

आज़माता उसके सामने

खुद को जब में था

फिर भी

ढूंढता फिरा हर उस सुहाने पल को मैं

कभी तो

रंग लूँ तस्वीर अपनी तेरे रंगों से में

बस रह गया खोया इसी धुन मैं

ओर चुपके से चुरा कोई दीवाना ले गया

ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में

ढ़ाल तेरे रंगों को अपने रंग में

Monday, October 3, 2016

मंत्रमुग्ध

अक्षर जब मिलते हैं

शब्द बनते जाते हैं

जैसे इनको पढ़िये

वैसे अर्थ बनते जाते हैं

प्रेरणा अक्षरों को जब मिलती हैं

सुन्दर अभिव्यक्ति की रचना बन जाती हैं

भाव पढ़नेवालों के वो तब हर लेती हैं

ओर मंत्रमुग्ध हो वो

बहाव में इसकी बह जाते हैं

अक्षर जब मिलते हैं

शब्द बनते जाते हैं

पायदान

ख़त का मजमूं कुछ इस तरह मिला

पैग़ाम ए इश्क़ का इक़रार मिला

मर कर भी

शायर के जज्बातों में जिन्दा रहने का

उनको नया अंदाज़ मिला

शायराना मिज़ाज भी शायर का

भूला रश्मों रिवाजों को

तारुफ़ में उनकी ही ग़ज़ल लिखने लगा

कुछ इस तरह मशगूल हो गया शायर

शाम ए महफ़िल से रुखसत हो

मोहब्बत का अपनी इज़हार

मदिरा के छलकते जामों से करने लगा

फुर्सत ना थी अब शायर को कही

मर्ज जो दर्द का लिया

दवा उसकी खुदा को भी मालूम ना थी

धड़कने भी अब शायर की

जिन्दा रहने को

इश्क़ के रहमों कर्म की मोहताज़ थी

जिन्ने ऐ

गुलाम ए इश्क़ की

पहली पायदान थी

पहली पायदान थी