Thursday, March 3, 2016

लफ्ज़

अधरों को मेरे लफ्ज़ अगर मिल जाते

करने हर खाब्ब को सच

पर लगा के वो उड़ जाते

ठहर ना पाती बात इसी तलक

क्योंकि, सितारों की महफ़िल से निकल वो

करीब चाँद के चले आते

आरजू जो थी दिल की

हसरतें वयां करने की

तम्मना पूरी वो कर पाते

तुम मानो  या ना मानो

रुखसत तेरे दिल से फिर कैसे हो पाते

अधरों को मेरे जो लफ्ज़ मिल जाते

अधरों को मेरे जो लफ्ज़ मिल जाते

2 comments:


  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-03-2016) को "दूर से निशाना" (चर्चा अंक-2272) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी
      सादर
      मनोज

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