Wednesday, September 2, 2015

अंदाज़

बदल जाती है फ़िज़ाओं की राग

शायराना होता हैं जब अंदाज़

व्यार जो फ़िर  बहती हैं

निखार इंद्रधनुषी घटा सा लिए आती हैं

हर एक कलमा जैसे संग अपने

रंगों की ताबीर लिए आती हैं

जैसे बिन सुर बिन ताल ही

सप्त सुरों की रागिनी

मधुर तान लिए आती हैं

ओर फिर

बदल जाती है फ़िज़ाओं की राग

शायराना होता हैं जब अंदाज़

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