Sunday, August 3, 2014

लम्बी रात

आज नींद फिर दगा दे गयी

सपने शुरू होने से पहले आँखे खुल गयी

आसमां भी अकेला था उसपर

ना सितारों का साथ था

ना चाँद में भी वो बात थी

टहरी टहरी सी रात की तन्हाई थी

झुकी झुकी बोझिल पलकें

करवटे तलाश रही थी

पर नींद सपनों से कोसों भाग रही थी

ओर गुजर नहीं यह रात थी

हर पल लम्बी घनी रात का अहसास करा रही थी

हर पल लम्बी घनी रात का अहसास करा रही थी

No comments:

Post a Comment