Wednesday, July 9, 2014

दास्ताँ

दास्ताँ अरमानों की है

बुनते बिखरते सपनों की है

पर लगाके उड़ते अफसानों की है

वबंडर की आँधी में

छू ना पाये अंबर

दास्ताँ ऐसे अरमानों की है

ख्यालों की कवायद में

बेसुध रहने की

दास्ताँ ऐसे बुनते बिखरते सपनों की है

मीठे अहसास की

दर्द ए जूनून बन जाने की

दास्ताँ ऐसे अफसानों की है

दास्ताँ अरमानों की है

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