Wednesday, December 4, 2013

आस पास

कभी कभी यह अहसास होता है

तुम हो

यहीं कहीं मेरे आस पास हो

वो पतों कि सनसनाहट

पैरों कि आहट

हवाओं कि सरसराहट

मधुर बोलों कि गुनगुनाहट

चाँदनी कि झनझनाहट

झांझर कि हिनहिनाहट

मृदंग कि थपथड़ाहट

नयनों कि छटपटाहट

दीवानगी का ये आलम संजोती है

परछाईयों में भी तुम्हें टटोलती है

ख्यालों में भी अक्स तेरा ही बुनती है

कभी कभी दिल को अहसास करा जाती है

तुम हो

यहीं कहीं मेरे आस पास हो



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