Tuesday, November 19, 2013

सिसकती जिंदगी

देखो मरघट बन गया संसार

सिसकती जिंदगी पड़ी राहों में

पर करहाहट किसीको सुनाई देती नहीं

मानो अंधो बहरों का शहर हो जैसे कोई

पर रफ़्तार जिंदगी कि कम होती नहीं

लगाम जिंदगी कि जैसे निकल गयी हाथ से

फुर्सत नहीं सहारा दे दे

बेदम हो रही जो जिंदगी आँखों के सामने

जनाजा निकल गया जिंदगानी का

जब बिन कफ़न ही दफ़न हो गयी जिंदगी 

इन अंधे बहरों के संसार में

इन अंधे बहरों के संसार में


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