Monday, August 26, 2013

अपनी दुनिया

नम आँखों से तेरी विदाई देखते रहे

ख़ामोशी से तक़दीर की रुसवाई सहते रहे

हौसला इतना जुटा ना पाए

चाहत की अपनी खातिर अपनों से लड़ पाए

डोली आनी थी जो मेरे अँगना

विदा हो रही थी किसी ओर के अँगना

कैसे रचेगी मेहंदी उसके हाथों सजना

कैसे अब मैं जी पाऊंगा उसके बिना

सपनों में भी जिसे भुला ना पाऊंगा

सिर्फ उसकी यादों के सहारे कैसे मैं जिन्दा रह पाऊंगा

ख़त्म हो गयी अब सारी दुनिया

अपने ही हाथों उजाड़ दी मैंने अपनी दुनिया 

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