Friday, October 26, 2012

जमीं

अपनी जमीं तलाश रहे कदम

पेड़ों के झुरमुट में

जड़े अपनी तलाश रहे नयन

नाता जुड़ा खोख से जैसे कोई

वैसे अपनी जड़े तलाश रहे कदम

कौन सी थी वो छत्र छाया

पड़ी जहाँ कदमों की साया

बिसरे अतीत की छावं से

बिछुड़ ना जाए ये साया

निशाँ पड़े थे जहा पर

गर्त पड़ी थी वह पे

कदमों में जैसे बिच्छे पड़े थे तीर

पलकों में जैसे कैद नयनो के नीर

राह भटके ना फिर कभी

तलाश रहे कदम अपनी जमीं की मित

 

2 comments: