Monday, October 15, 2012

दो पल

जिन्दगी दो पल ही काफी थी

बारिश की दो बूंदे ही बाकी थी

जीवन कण भरा था जिनमे

संजीवनी सुधा सजी थी उनमे

उस दो पल की जिन्दगी ही काफी थी

जिन्दगी दो पल ही काफी थी

साँसे अभी ओर भी बाकी थी

धडक रही थी धड़कने

जीवन प्राण भरे थे जिनमे

उस दो पल की जिन्दगी ही काफी थी

जिन्दगी दो पल ही काफी थी

चाहत जिन्दगी की अभी बाकी थी

दिल की आवाज़ सजी थी जिसमे

प्रेम सुधा रस भरी थी जिसमे

उस दो पल की जिन्दगी ही काफी थी

जिन्दगी दो पल ही काफी थी







 

4 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |

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