Friday, September 21, 2012

दिवा स्वप्न

दिवा स्वप्न था कोई

सुन्दर कविता बने कोई

हर लफ्जों में जिसकी

बसी हो सरस्वती वंदना कही

जो मौन रहे तब भी

छू ले ह्रदय तार कही

प्रेरणा हो वो जीने की जैसे कोई

सप्तरंगो में रंगी

मधुर बोलो से सजी

सुन्दर कविता बने कभी

दिवा स्वप्न जो था कोई

सच हो वो खाब्ब कभी 

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