Friday, September 28, 2012

साये का आकार

रंगों से आगाज हु

बस एक काले साये का आकार हु

खिलता रहा रंगों के बीच

फिर भी रंग ना पाया रंगों के रंग

सुन्दर था हर एक रंग

पर काली थी उनकी छाया

रंगों के इस रंग में

फीकी थी हर रंगों की माया

क्योंकि चमक रही थी हर ओर

सिर्फ श्याम रंगों की छाया

श्याम रंगों की छाया



 

Monday, September 24, 2012

गर्भ गृह

निखरती गयी चाँदनी

ज्यूँ ज्यूँ चन्दा बड़ता गया

आँचल के गर्भ गृह से निकल

यौवन मधुशाला रोशन करता गया

छिटकती किरणों से आफताब ऐसा रोशन हुआ 

शबनमी बूंदों सा आभा गुलाल खिलता गया

रूप लावण्य ऐसा सुन्दर निखरा

ज़माना मदहोश होता चला गया  !!

Saturday, September 22, 2012

खुदगर्ज

खुदगर्ज तुम भी थी

यह मालूम ना था

बेवफा किस्मत थी

यह समझ नहीं था

लुट गए तेरे हाथों

जो कभी सोचा ना था

क्यों एतबार किया तुमपे

हमको मालूम ना था

रेहन

बोझ इतना तालीम का

रेहन रख दी पुस्तक सारी

भारी भरकम शब्द जाल में

उलझ गयी बचपन बेचारी

स्पर्धा होड़ बीच

खो गयी बचपन की छाया

बचाने उस मासूमियत की माया 

रेहन रख दी पुस्तकों की छाया 

उम्र

बात उम्र की ना करो

जवानी अभी सयानी है

चर्चे सरे आम किया ना करो

हाल ये मज्मुं वयाँ किया ना करो

अभी तो ये लड्क्प्पन की जवानी है

जवानी अभी सयानी है

नागवारा है जिक्र उम्र का

यौवन पड़ाव अभी बाकी है

बात उम्र की ना करो

जवानी अभी सयानी है

Friday, September 21, 2012

दिवा स्वप्न

दिवा स्वप्न था कोई

सुन्दर कविता बने कोई

हर लफ्जों में जिसकी

बसी हो सरस्वती वंदना कही

जो मौन रहे तब भी

छू ले ह्रदय तार कही

प्रेरणा हो वो जीने की जैसे कोई

सप्तरंगो में रंगी

मधुर बोलो से सजी

सुन्दर कविता बने कभी

दिवा स्वप्न जो था कोई

सच हो वो खाब्ब कभी 

Wednesday, September 19, 2012

गुफ्तगुं

सुध बुध भुला बातों में मशगुल जवानी

उलझी लट्टे बिखरे बाल

उन्मुन्दी आँखे वयां कर रही कहानी

थक के चूर ह जिंदगानी , पर

विश्राम के लिए बातों से फुर्सत कहा

इशारों इशारों में  समझा रही जवानी

लुफ्त जो ना लिया इस पल

गुफ्तगुं बन जायेगी परेशानी

भुला सुध बुध बातों में मशगुल जवानी

 

जीवन पथ

डग डग चलता गया

कोस कोस बड़ता गया

होले होले धीमे धीमे

जीवन पथ अग्रसर होता गया

मनन कर स्मरण कर

कदम वक़्त के साथ मिलाता चला गया

उद्वेग गिलानी इर्ष्या भुला

एक प्यार भरी दुनिया संजोने

कांटो की राहों पे चलता गया

होले होले धीमे धीमे

जीवन पथ अग्रसर होता गया

लौ

अकेले ये तय ना कर पाया

किस राह चलते जाना है

देख दिए को ये ख्याल आया

प्रकाश पुंज की एक छोटी सी लौ  

पथ प्रदर्शक बन

जिन राहों को रोशन करे

उन राहों पे चलते जाना है