Saturday, December 29, 2012

दामिनी का बलिदान

लड़ गयी दामिनी मौत से

पर हार गयी साँसों की डोर से

खामोश हो चिरनिंद्रा सो गयी

चिथड़ों में जिन्दगी

अलविदा कह गयी दामिनी

विजय जय घोष के साथ

रो उठा खुदा भी

देख दामिनी की अंतिम रण हुँकार

झुक गया आसमां

लज्जा गया सूरज का भी आफताब

व्यर्थ ना जाए दामिनी का यह बलिदान

आओ हम सब मिल प्रण करे ये आज

हर नारी को मिले गर्व से जीने का अधिकार 

Tuesday, December 25, 2012

किरण

दुश्मनों मैं दोस्त तलाशता रहा

शैतानों के बीच खुदा तलाशता रहा

गुमनामी की गलियों से निकलने को

रोशनी की किरण तलाशता रहा

छिटक हाथ भटक गया उस राह

गर्त की काली स्याह में जिधर

अस्त हो रही जीवन की छावं भी

दलदल इतना गहरा

खिंच रखी जड़ों की छोर भी

लहुलुहान हो थक गया

हौसला पस्त होते होते रुक गया

उम्मीद जगने लगी  फिर से

नजर आने लगी जब

उज्जाले का किरण फिर से

 

Monday, December 24, 2012

दामिनी

सिसकती रही बेबस दामिनी

पर उन दरिंदो को जरा भी रहम ना आई

शर्मसार हो गयी सभ्यता सारी

छिन्न भिन्न हो गयी कायनात सारी

ढाये जालिमों ने ऐसे जुल्म

रूह शैतान की भी काँप गयी

बना अपनी हवस का शिकार

सरिया लोहे की खोख में उतार दी

फेंक दिया बीच राह नग्न कर

कुदरत भी लज्जा गयी

दिलाने इन्साफ अपने को

झुन्झ रही दामिनी मौत से

सुन उसकी आत्मा की अंतर्नाद

खुदा भी खुद खौफ जदा हो गयी

सुनो ये दुनियावालों

दामिनी है तुम्हे पुकार रही

रहनुमा ना बन सके

हमदर्द बन

इस रण में तुम भी शामिल हो जाओ

उसके इन्साफ के लिए

सरकार तो क्या

खुदा से भी तुम लड़ जाओ

कोई तो सच्चा मसीहा बन

ऐसी पुनरावृति से समाज को बचा लाओ

 

कलियाँ

रंग बी रंग पुष्पों की कलियाँ

अनछुई कोमल पंखुड़ियाँ

शबनमी बुँदे खुशबुओं की लड़ियाँ

महका रही फिजायें

रूमानी बना रही साँसे

करवटे बदलने लगे अरमान

बुनने लगे नये अहसास

नाजुक कोमल सेज का

सपनों में करने लगे दीदार

करने लगे दीदार

 

मिले कैसे

मिले तुमसे कैसे

तुमने कभी पुकारा नहीं

चाहे तो चाहे तुम्हे कैसे

तुमने कभी चाहा नहीं

बिन तेरे जिये कैसे

जीना तुझे गंवारा नहीं

तुम जो बदल गए

हमें भी वो गंवारा नहीं

जिक्र किया तुमने जमाने का

अफसाना ये परवान चढ़ा नहीं

कैसे कहे तुमसे

इस बेदर्द जमाने को

प्यार की क़द्र है नहीं

मिले जो तुमसे तो

इजहार करे इश्क तुमसे

पर मिले कैसे

मिलना तुम्हे गंवारा नहीं

 

Thursday, December 13, 2012

घटायें

बड़ी ही असमंजस की है ये बात

चलती है घटायें मेरे साथ भी

कुछ पल को ठहर जाऊ जो कहीं

रिम झिम बरस जाती है घटा वही

इसे महज ये इतेफाक कहूँ या संजोग

कुदरत की है पर ये अद्भुत देन

मरुभूमि की प्यासी धरती में भी

घुमड़ आती है घटाओं की छाया

जब पड़ते है चरण वहाँ

बदल जाती है वहाँ की साया

पर सच है यही 

चलती है घटायें मेरे साथ भी





 

युवा चाहत

युवा दिखने की चाह अभी है बाकी

बुड़ापे की है ये निशानी

इस मर्ज की अवधी है बड़ी निराली

बहक जाती बुड़ापे में जवानी है

नकली बाल और दाँतों के संग

युवा दिखने की पूरी है तैयारी

देख हसीन चहरों को

हिलोरें मारे जवानी है

हाथों में लाठी

आँखों में लाली

ललक मटरगस्ती की

पर अभी तलक है बाकी

बुझते चिरागों में

रौशनी की लौ अभी है बाकी

निहारे दर्पण खुद को

कामना ऐसी अभी है बाकी

युवा दिखने की चाहत अभी है बाकी 



 

वरण

हरण किया जिसने इस दिल का

वरण उसे करने की है तारीख आयी

डाल बाहों का हार गले में

कसमे खायी साथ निभाने की

बना चाँद को साक्षी

रस्मे पूरी कर डाली

समर्पित हो एक दूजे को

दो जिस्म पर जान एक बना डाली

न फेरे न बाराती

पर मेघा फूल बन बरस आयी

स्वयंवर से भी हसीन यह पल

यादगार मिलन बेला बन आयी

था इन्तजार जिस पल का

वो शुभ बेला चली आयी 

दिलों के तार

सज गए दिलों के तार

तड़पती रूह हो गयी शान्त

चलने लगी फिर से जैसे साँस

धडकनों में आ गए जैसे प्राण

मिला जो सुर को साज का साथ

सज गए दिलों के तार

छाने लगी मदहोशी की खुमार

सुनायी देने लगी प्रेम राग

बदल गयी रूह की चाल

पूरी हो गयी जैसे कोई तलाश

मिला धडकनों को

जो संगीत का साथ

सज गए दिलों के तार 

Friday, December 7, 2012

निगाहें

निगाहें जाने क्यों शरमा जाती है

देख खूबसूरती को अदब से झुक जाती है

पलके बंद कर तारुफ़ वया कर जाती है

जो लफ्ज लव सहज कह ना पाए

आँखों ही आँखों में वो बात कह जाती है

अंदाज ये निगाहों का दिल में उतर

प्यार के परवान चढ़ जाती है

निगाहें जाने क्यों शरमा जाती है



 

Wednesday, November 28, 2012

पड़ाव

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है

बचपन खिले जिसमे फिर से

रंग बिखरे बचपन के जिसमे फिर से

उम्र की दहलीज का वो मुकाम अभी बाकी है

है यह आखरी पड़ाव उम्र का

फिर भी इसमें खो जाने की बेताबी है

वो सपनों की रंगीन दुनिया

हर गुस्ताखी जिसमे माफ़ी है

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है

मुक्त हो बंधन की डोर जिसमे

गूंजे मसखरी के ठहाके जिसमे

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है

उम्र का वो पड़ाव अभी बाकी है




 

Monday, November 26, 2012

तांडव

बबंडर ऐसा उठेगा

कोहरा घना छा जाएगा

गुब्बार जो दफन होगा

ज्वालामुखी सा फुट जाएगा

गुमान भी ना होगा

वक़्त ऐसा भी आएगा

दिन में रात का अँधेरा घिर आएगा

खत्म हो जाएगा पल में सब कुछ

तांडव ऐसा आएगा

तांडव ऐसा आएगा







 

आस

हर दिन के साथ

गुजर गयी एक आस

कर रहे इन्तजार जिनका

अधूरी रह गयी वो आस

सिलसिला ये दर्दवाला

जीने की राह बन गयी

निगाहों को चैन कहा

जरे जरे में

उनकी तलाश शुरू कर दी

ओर समझा दी

धडकनों को भी ये बात

जब तलक पूरी नहीं हो जाती आस

निकलने न देंगे

इस तन से प्राण 

हक

ये खुदा मुझको तू अपना पता देना

मिलने एक रोज तुझसे आऊंगा

हर बार छला तूने

जबाब उसका लेने आऊंगा

रुला अगर तुझे दिया नहीं

प्राण अपने वही छोड़ आऊंगा

मोहरा बना दिया

अपनी शतरंज का

किस्मत को मेरी तूने

वो जबाब भी तुझसे चाहूँगा

जो तुम दे न सके जबाब

खुदा कहलाने का हक

तुझसे छीन मैं ले जाऊँगा 

Tuesday, November 20, 2012

हाथों की लकीर

ठन गयी एक दिन खुदा से मेरी

कहा उसने बन्दे

नहीं किस्मत की लकीर तेरे हाथों में

जज्बातों में वक़्त जाया ना करना

हुनर हो तो अपनी किस्मत लिख दिखलाना

कहा मैंने फिर खुदा से

बन्दा सच्चा हु तेरा

ये तुमको मैं दिखलादुँगा

बिन लकीर दिलों पे राज कर

हुनर अपना दिखलादुँगा

बना कटारी से हाथ पे रेखा

अपनी किस्मत खुद मैं बना लूँगा

पर मांगने तुझ से कुछ

चोखट तेरी ना आऊँगा

चोखट तेरी ना आऊँगा

हुनर तुमको मैं अपना दिखला जाऊँगा 

Monday, November 19, 2012

मशरूफ जिन्दगी

मशरूफ है जिन्दगी आजकल

ख्यालों में उलझी

ना जाने कहा खोई खोई रहती आजकल

पल पल जीती

पल पल मरती

हर पल एक नया इम्तिहान देती आजकल

खाब्ब ढेर सारे

फेहरिश्त अरमानों की लम्बी बुनती रात भर

हकीक़त की जमीं

नींद आने ना दे रात भर

जीना नहीं जीने के लिए

कहती फिरती आजकल

पंख मिल जाए अरमानो को

उलझी रहती इन्ही ख्यालों में आजकल

मशरूफ है जिन्दगी आजकल 

सपनो का सौदा

आ मैं सपनो का सौदा कर लू

सपने तुम्हे दे दू

नींद मैं ले लू

गुजरती नहीं है राते

सुनी रहती है आँखे

बाहों में तेरी सो जाऊ आके

ले लो तुम मेरे सपने उधार

बड़ी लम्बी होती है वो रात

झपकते नहीं नयना जिस रात

हो सपनो के रथ पे सवार

चुरा ले जाती निंदिया की आँख

करलो मेरा सौदा स्वीकार

लोटा दो मेरी निंदिया

ले लो मेरे सपने उधार

 

कदरदान

मूकदर्शक कदरदान नहीं

कला पारखी चाहिए

कटाक्ष हो या आलोचना

व्यक्त उसे करने वाला चाहिए

भावानाये जुडी हो जब

मंथन करने को

विचारों के सुझाभ चाहिए

अभिनय हो या लेखन

निखार ओर पैनी हो

मूकदर्शक कदरदान नहीं

आलोचक और समीक्षक चाहिए

समझे जो भावार्थ के अर्थ

कदरदान वैसा चाहिए 

Thursday, November 15, 2012

दौलत

दौलत है सपनों की रानी

गरीबों का पैसा

अमीरों का पानी

बदल दे किस्मत

लिख दे नयी जुबानी

मोह माया ऐसी

लहू जैसे लहू की प्यासी

कदर नहीं इंसान की

आदर पर इसका करे दुनिया सारी

बना दे पल में बिगड़े काज

या करवा दे जज्बातों को नीलाम

अमीरों के लिए वरदान

गरीबों का दाना पानी

दौलत है सपनों की रानी
 

Saturday, November 10, 2012

सपनों की रात

तुम कुछ कहती तो मैं कुछ सुनता

सारी रात यूही करवटें ना बदलता

नींद कहा आँखों में थी

सपने की रात गुजर जाने को थी 

खामोश मगर मग्न

ना जाने तुम क्या विचार रही थी

नई नवेली दुल्हन जैसे शरमा रही थी

बाहों को तेरे आगोश की आस थी

पर रात ढल जाने को बेताब थी

बेकरार निंद्रा भी थी

पर आँखों में कहा उसकी परछाई थी

करवटों में रात खोने को लाचार थी

सुबह की लालिमा उदय होने को त्यार थी

 

Thursday, November 8, 2012

जीवन संवेदना

स्वर शब्दों की अनूठी भाषा

मीठी वाणी अमृत का प्याला

छलके ऐसे गागर से सागर जैसे

इस सुन्दर माध्यम की

नहीं कोई परिभाषा

समाई जिसमे सृष्टि की अभिलाषा

सक्षम है अक्षरों की भाषा

प्रगट होती इनके हर भावों में चेतना

चाहे ख़ुशी हो या वेदना

हर अक्षरों में समाहित जीवन संवेदना 

बेमिशाल मोहब्बत

हुई मोहब्बत जो शराब से

हर जाम एक गजल बन गयी

हर शाम एक कविता बन गयी

आलम नशे का ऐसा चढ़ा

मधुशाला महबूबा बन गयी

सुरूर था सूरा का

लगी जो होटों से

संगिनी आखरी साँसों की हो गयी

बिन जाम कोई ना सहारा था

जीने का कोई ना बहाना था

यह वफ़ा की मिशाल थी

यारी इसकी बेमिशाल थी , बेमिशाल थी




धुंधली तस्वीर

धुंधली कैसे वो तस्वीर हो

स्नेह प्यार में बंधी जब डोर हो

अनमोल कैसे ना यादों के वो पल हो

मिले जिनमे अपनेपन के रंग हो

थामी जिसने धडकनों की डोर हो

भूल उनको जाने की खता फिर कैसे हो

भूल उनको जाने की खता फिर कैसे हो

Tuesday, October 30, 2012

नफरत

नफरत का कोहरा ऐसा छाया

विलुप्त हो गयी प्यार की भाषा

अपने ही अपनों के दुश्मन

घृणा होड़ का पसरा ऐसा साया

तरकश कटारी बाण से ज्यादा

पैनी हो गयी जुबाँ की भाषा

यकीन एतबार का उठ गया साया

नफरत का जो तूफां आया

पसर गयी जैसे अमवास की छाया

छंट गया जैसे विश्वास का साया

सही गलत सब हो गए बेमान

हर इंसां हो गया नफरत का शिकार

जमीर की तो अब करो ना बात

लहू हो गया पानी सामान 

दीवाना

मयिअत पे हमारी रोने तुम ना आना

पता जमाने को चल जाएगा

दीवानों की फेहरिस्त में

एक नाम और जुड़ जाएगा

जनाजे को तुम कांधा ना लगाना

माहौल मातम का

आंसुओ का सैलाब बन जाएगा

कब्र पे हमारी तुम कभी ना आना

अश्क तुम्हारे नयनो में देख नहीं पायेंगे

गुजारिश हमारी कबूल फरमाना

ख्वाइश आखरी हमारी

पूरी कर जाना तुम

कब्र पे हमारी

दीवाना नाम लिखवा देना तुम



 

Monday, October 29, 2012

बेजुबाँ

दिल की हसरतों को काश हवा दे पाते

मोहब्बत को अपनी जुबाँ दे पाते

तेरे ख्यालों की ताबीर बुना करते थे

काश तुमको ये बतला पाते

पाक ऐ बेनजीर थी चाहत

तुमको ये समझा पाते

मोहब्बत को अपनी जुबाँ दे पाते

चाहा सिर्फ तुम्हे

तुमको ये अहसास करा पाते

हर साँसों पे लिखा तेरा ही नाम

तुमको ये दिखला पाते

मोहब्बत को अपनी जुबाँ दे पाते

तुम थी मेरी दुआ

फ़रियाद तुम्हे ये सुना पाते

मोहब्बत को अपनी जुबाँ दे पाते

दिल की हसरतों को काश हवा दे पाते

मोहब्बत को अपनी जुबाँ दे पाते

पुरानी पहचान

धडकनों से दिल की पहचान पुरानी है

तेरे ख्यालों से दिल की गिटार बजे

अहसास ये रूमानी है

धडकनों से दिल की पहचान पुरानी है

तेरी साँसों से सजे धडकनों की साज

ख्याल ये बड़ा ही रूमानी है

धडकनों से दिल की पहचान पुरानी है

धडकनों से दिल की पहचान पुरानी है

Saturday, October 27, 2012

रूमानी रंग

जिन रंगों में जिया करते थे

उन रंगों से नाता तोड़ लिया

बात रंगों में अब वो ना थी

मुस्कान उनमें अब पहली सी ना थी

बदल गयी थी तस्वीर पुरानी

श्याम स्वेत हो गयी थी जिन्दगी बेचारी

लाचारी थी यह बड़ी भारी

रंगों ने बिगाड़ दी थी तस्वीर की कहानी

अधिक रंगों के पुट से

बदरंग हो गयी थी जिन्दगी बेचारी

रंग अब जीवन से दूर थे

पर श्याम स्वेत भी कहा रूमानी कम थे 

गुमराह

गुमराह हो जब कभी

अनजाने सफ़र को निकलो तुम कभी

आँखे बंद कर

पता दिल से पूछना तुम वही

एक नयी राह पाओगे तुम तभी

होगी मंजिल दूर कहीं

पर करीब उसे पाओगे तभी भी

 

Friday, October 26, 2012

जमीं

अपनी जमीं तलाश रहे कदम

पेड़ों के झुरमुट में

जड़े अपनी तलाश रहे नयन

नाता जुड़ा खोख से जैसे कोई

वैसे अपनी जड़े तलाश रहे कदम

कौन सी थी वो छत्र छाया

पड़ी जहाँ कदमों की साया

बिसरे अतीत की छावं से

बिछुड़ ना जाए ये साया

निशाँ पड़े थे जहा पर

गर्त पड़ी थी वह पे

कदमों में जैसे बिच्छे पड़े थे तीर

पलकों में जैसे कैद नयनो के नीर

राह भटके ना फिर कभी

तलाश रहे कदम अपनी जमीं की मित

 

आत्मविश्वास

निश्चल दृड़ आत्मविश्वास

उत्सव उमंगों की बहार

ना कोई अग्निपथ

ना कोई कांटो का हार

शीतल शान्त मनभावन

सहज करदे ह्रदय पावन

संयम स्थिर गुणबखान

शिखर कामयाबी क़दमों के पास

निश्चल दृड़ आत्मविश्वास

उत्सव उमंगों की बहार


 

Wednesday, October 17, 2012

खुबसूरत अहसास

सकून एक सुखद अहसास है

यादों का खुबसूरत गुलिस्ताँ है

महकती है फिजा गुजरे कल की

याद आती है जब गुजरे पल की

खिलती उठती है मुस्कान

मिल जाती है जैसे कोई खोई पहचान

पनपने लगता है यह अहसास

यादों में सिमटा है खुबसूरत अहसास

खुबसूरत अहसास II

 

Monday, October 15, 2012

दो पल

जिन्दगी दो पल ही काफी थी

बारिश की दो बूंदे ही बाकी थी

जीवन कण भरा था जिनमे

संजीवनी सुधा सजी थी उनमे

उस दो पल की जिन्दगी ही काफी थी

जिन्दगी दो पल ही काफी थी

साँसे अभी ओर भी बाकी थी

धडक रही थी धड़कने

जीवन प्राण भरे थे जिनमे

उस दो पल की जिन्दगी ही काफी थी

जिन्दगी दो पल ही काफी थी

चाहत जिन्दगी की अभी बाकी थी

दिल की आवाज़ सजी थी जिसमे

प्रेम सुधा रस भरी थी जिसमे

उस दो पल की जिन्दगी ही काफी थी

जिन्दगी दो पल ही काफी थी







 

Thursday, October 11, 2012

शहादत

हर उस जज्बे को सलाम है

शहादत के लिए जिसका सपूत तैयार है

बड़े ही गर्व की बात है

पूत  वो महान है

लहू तो सभी का लाल है

पर इन शूरवीरों के

लहू के हर कतरे में पैगाम है

मातृ भूमि की रक्षा के  लिए

सब कुछ न्योछार है

रहे सब अमन से

इसलिए करने अपना बलिदान तैयार है

 

Wednesday, October 10, 2012

अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति के सपंदन मात्र से

लहर वो चली आयी 

आगोश में मानो जैसे जन्नत चली आयी

ये आरधना का असर था

या प्रार्थना का स्पर्श था

पर पुलिंदा विचारों का

व्यर्थ का अनर्थ था

ओजस्व वाणी के आगे जैसे

समस्त जन नतमस्तक था

स्वतंत्र धारा की इस वेग का

सृजन अभिव्यक्ति के गर्भगृह में ही छुपा था 

किनारा

जिन लहरों पे तुम्हारा नाम ना था

उन लहरों से हमारा नाता ना था

उफनते साहिलों को

तुम्हारी मौजों का ही सहारा था

पर हमारे लिए

तुम्हारे प्यार का किनारा ही काफी था 

Tuesday, October 9, 2012

सुन्दर उपहार

कर  रहे थे जिस शुभ बेला का इन्तजार 
 
ले आयी  नन्ही परी 
 
खुशियों की वो सौगात 
 
 भर गया माँ का आँचल 
 
गूंज उठा घर का आँगन 
 
धन्य हो गया सारा परिवार 
 
दिया ईश्वर ने ऐसा सुन्दर उपहार 

Thursday, October 4, 2012

दीवानगी की जंग

लुट ली जमाने ने अस्मत मोहब्बत की

रुसवा हो गयी परछाई मोहब्बत की

सिमट गया दायरा

दब गयी मोहब्बत सीने में कहीं

बेआबरू वो कैसे हो

जुड़ी हो जिससे दिलों की धड़कन

सिसकियाँ भर फरमाया दिल

मोहब्बत है सबसे हसीन चीज

बाँध सर पे कफ़न

ओढ़ी जब प्यार की चादर

बदनाम कैसे फिर प्यार हो

जमाने को यह अहसास हो

दीवानगी की ये जंग

प्यार करनेवाले सरफारोसो के नाम हो !!

 

Tuesday, October 2, 2012

दरिन्दे

मंदिर की जीन्ने चढू कैसे

हाथ रंगे है खूनी दरिन्दे से

स्वार्थ सिद्ध के लिए

नाता तोड़ लिया

ना जाने कितने संस्कारों से

आत्ममंथन करूँ कैसे

गिरवी रख दी दिल की आवाज़

झूठी शान के लिए

छटपटा रहा हूँ

पर उड़ू कैसे

कतरे पर इन्ही हाथ दरिन्दों  ने

 इन्ही हाथ दरिन्दों ने !!

Friday, September 28, 2012

साये का आकार

रंगों से आगाज हु

बस एक काले साये का आकार हु

खिलता रहा रंगों के बीच

फिर भी रंग ना पाया रंगों के रंग

सुन्दर था हर एक रंग

पर काली थी उनकी छाया

रंगों के इस रंग में

फीकी थी हर रंगों की माया

क्योंकि चमक रही थी हर ओर

सिर्फ श्याम रंगों की छाया

श्याम रंगों की छाया



 

Monday, September 24, 2012

गर्भ गृह

निखरती गयी चाँदनी

ज्यूँ ज्यूँ चन्दा बड़ता गया

आँचल के गर्भ गृह से निकल

यौवन मधुशाला रोशन करता गया

छिटकती किरणों से आफताब ऐसा रोशन हुआ 

शबनमी बूंदों सा आभा गुलाल खिलता गया

रूप लावण्य ऐसा सुन्दर निखरा

ज़माना मदहोश होता चला गया  !!

Saturday, September 22, 2012

खुदगर्ज

खुदगर्ज तुम भी थी

यह मालूम ना था

बेवफा किस्मत थी

यह समझ नहीं था

लुट गए तेरे हाथों

जो कभी सोचा ना था

क्यों एतबार किया तुमपे

हमको मालूम ना था

रेहन

बोझ इतना तालीम का

रेहन रख दी पुस्तक सारी

भारी भरकम शब्द जाल में

उलझ गयी बचपन बेचारी

स्पर्धा होड़ बीच

खो गयी बचपन की छाया

बचाने उस मासूमियत की माया 

रेहन रख दी पुस्तकों की छाया 

उम्र

बात उम्र की ना करो

जवानी अभी सयानी है

चर्चे सरे आम किया ना करो

हाल ये मज्मुं वयाँ किया ना करो

अभी तो ये लड्क्प्पन की जवानी है

जवानी अभी सयानी है

नागवारा है जिक्र उम्र का

यौवन पड़ाव अभी बाकी है

बात उम्र की ना करो

जवानी अभी सयानी है

Friday, September 21, 2012

दिवा स्वप्न

दिवा स्वप्न था कोई

सुन्दर कविता बने कोई

हर लफ्जों में जिसकी

बसी हो सरस्वती वंदना कही

जो मौन रहे तब भी

छू ले ह्रदय तार कही

प्रेरणा हो वो जीने की जैसे कोई

सप्तरंगो में रंगी

मधुर बोलो से सजी

सुन्दर कविता बने कभी

दिवा स्वप्न जो था कोई

सच हो वो खाब्ब कभी 

Wednesday, September 19, 2012

गुफ्तगुं

सुध बुध भुला बातों में मशगुल जवानी

उलझी लट्टे बिखरे बाल

उन्मुन्दी आँखे वयां कर रही कहानी

थक के चूर ह जिंदगानी , पर

विश्राम के लिए बातों से फुर्सत कहा

इशारों इशारों में  समझा रही जवानी

लुफ्त जो ना लिया इस पल

गुफ्तगुं बन जायेगी परेशानी

भुला सुध बुध बातों में मशगुल जवानी

 

जीवन पथ

डग डग चलता गया

कोस कोस बड़ता गया

होले होले धीमे धीमे

जीवन पथ अग्रसर होता गया

मनन कर स्मरण कर

कदम वक़्त के साथ मिलाता चला गया

उद्वेग गिलानी इर्ष्या भुला

एक प्यार भरी दुनिया संजोने

कांटो की राहों पे चलता गया

होले होले धीमे धीमे

जीवन पथ अग्रसर होता गया

लौ

अकेले ये तय ना कर पाया

किस राह चलते जाना है

देख दिए को ये ख्याल आया

प्रकाश पुंज की एक छोटी सी लौ  

पथ प्रदर्शक बन

जिन राहों को रोशन करे

उन राहों पे चलते जाना है 

Monday, August 27, 2012

मरघट की छाया

खौफजदा है जिन्दगी

मन मस्तिष्क में बज रही

दहशत भरी ध्वनि

आतंकवाद ने पसारा ऐसा साया

उजाड़ गया सुन्दर चमन सारा

फैला  चारों ओर ऐसा सन्नाटा

दिन के उजाले में भयभीत कर दे

हलकी सी अफवाहों की काली साया

रोंगटे खड़े हो जाए

देख सुन जिस तांडव की माया

पसरा दी उसने जन्नत में भी

मरघट की छाया , मरघट की छाया 

Saturday, August 25, 2012

एक अल्पविराम

अल्पविराम  क्या लिया

शिथिल  जिन्दगी पड़ गयी

उफनते सैलाब को

ठहराव की वजह मिल गयी

जोश मंद हो गया

जूनून वो जाने कहा खो गया

वजह जो जीने की थी

मंजिल मिलने से पहले ही

राह भटक गयी

एक अल्पविराम ने

सारी कायनात बदल डाली

जीने के लिए आलस का त्याग करने की

नसीहत दे डाली

 

Tuesday, August 21, 2012

अधूरे सपनों की कहानी

वो अधूरे सपनों की कहानी

मैं था और थी मेरी परछाई

चलते चलते बिछुड़ना

नियति थी हमारी

प्रेम पिपासा चक्षु जिज्ञासा

ह़र आहट बुनते

एक नयी कहानी

लफ्जों की उनको ना थी आजादी

मिलके बिछड़ने की

बड़ी अनोखी थी ए प्रेम कहानी

गंतव्य

पहुँच गंतव्य के करीब

फुट पड़े क़दमों के बोल

आलिंगन शिखर को करने

बेताब हो उठे बाहों के घोर

डबडबा आयी आँखे

पा मंजिल का छोर

अर्जित हो गयी ख्याति

छा गया नाम चहुँ ओर

Thursday, August 16, 2012

दुआ

सालगिरह की इस बेला

नजराना क्या भेंट करूँ

उम्र हमारी भी मिल जाये आपको

तोहफा ए पेश करूँ

खुश रहे आप सदा

रब से बस यही दुआ करूँ

फूल

फूल बन वेणी में गूँथ

बालों में सज जाऊ मैं

माला में पिरों

गर्दन में सज जाऊ मैं

श्री चरणों में चढ़

कदमो से उनके लिपट जाऊ मैं

पर दिल कह रहा है

शहीदों की वेदी पे सज

जीवन अपना सफल कर जाऊ मैं


पारस

अवसर कभी मिला नहीं

प्रोत्साहित कभी किसीने किया नहीं

छिपी प्रतिभा से

जग रूबरू कभी हुआ नहीं

कला जो थी सुन्दर

उभर कभी पायी नहीं

कद्रदान कभी मिले नहीं

हुनर को परख सके

पारस ऐसा कभी मिला नहीं

Monday, August 13, 2012

लाचार जिन्दगी

अकेलेपन की तनहाइयों में

जिन्दगी गुजरे कल में खो गयी

दायरा सिमट गया

झर झर नयन स्वत: ही बह पड़े

आंसुओ की माला

यादों की बारात बन गयी

इस परछाई के संग जीने को

जिन्दगी लाचार हो गयी

गुमनाम

एक वो गुमनाम थी

बसी जिसमे जान थी

मूरत थी वो प्यार की

हार पल लबों पे

उसकी ही बात थी

चली गयी एक दिन

जाने वो किधर

सपना बन रह गयी मोहब्बत

Thursday, August 2, 2012

जन्नत का द्वार

मदिरालय की सीढ़ी चढूं

या शिवालय की चौखट चुमू

कदम कह रहे है

जन्नत की जिन्ने चढूं

ना मयखाने में वो आग है

ना मंदिर में सुप्रकाश है

स्वर्ग के द्वार खुले

लिए फूलों के हार है

डगर यह आसान नहीं

क्योंकि मृत्यु ही जन्नत का द्वार है

Wednesday, July 25, 2012

सागर की तलहट्टी

सागर की तलहट्टी

जैसे कोई सपनों की नगरी

स्वछन्द विचरण करती

तरह तरह की जल परियां

मुस्का रही हो मानों जैसे

खिलखिलाती सपनों की दुनिया

गहरे नीले पानी में समाई

जैसे तिल्सिम भरी काल्पनिक दुनिया

कह रही हो कुदरत मानों

जैसे यह है मेरी जादुई दुनिया

Saturday, July 21, 2012

पगली

क्या हुआ जो जुदा हो गयी

छोड़ अपनी दुनिया तन्हा हो गयी

सुनी किसने दिल की फ़रियाद है

इन्साफ कहाँ

ह़र तरफ आंसुओ का सैलाब है

करली पार जिसने ऐ तरणी

जीत गयी मानो जैसे कोई पगली

Wednesday, July 18, 2012

अरमानों के रंग

उड़ रही जिन्दगी की पतंग

लगा सपनों के पंख

रंग बी रंगों से रंगी

कर रही अटखेलियाँ

इन्द्रधनुषी रंगों के रंग

जीवन साँसों ने थाम रखी

जैसे इसकी डोर

कटने से पहले भरने इसमें

सच्चे सपनों के रंग

उड़ा इसे पूरे करने

जीवन अरमानों के रंग

जीवन अरमानों के रंग

Monday, July 16, 2012

इकरार

बेजुबा थी मोहब्बत

लफ्जों में वयां ना कर पाये

नयनों की भाषा में

इकरार कर ना पाये

तरसते रहे जिनके लिए

उनसे नजरे भी मिला ना पाये

फरयादी

अपनी तो अल्लाह सुने ना राम

करे फ़रियाद किससे

तुम ही बतलाओ ओ पालनहार

ह़र द्वारे शीश झुकाए

फैला झोली अर्ज लागए

पर इस बदनसीब पर

तुमको तरस ना आये

Saturday, July 14, 2012

गुमनाम

किसीने कभी ऐ ना जाना

हाले दिल हमारा पहचाना

जिसे हुस्न पे मर मिटे थे

वो मुमताज महल कहा है

चुना दी थी जिसके लिए मोहब्बत

दिले दरों दीवार

दफ़न कर दीये थे

सुलगते दिलों के अरमान

कहा खो गयी उस गुमनाम की पहचान

Thursday, July 12, 2012

खुशबू

निकली थी आप जिसे गली

भटक रहा हु उस गली

महक आपकी छिटक रही

आपके चले जाने के बाद भी

उस गली ओ महजबी

ढाई आखर का ए काम है

पैगाम ए आपके नाम है

महरूम हो गया खुद से

घुल गयी साँसों में

आपकी खुशबू की महताब है

Tuesday, July 10, 2012

उदासी

हुस्न ने पूछा जिन्दगी से

तू इतनी उदास क्यों है

कहा जिन्दगी ने

ढल गयी जवानी तुम्हारी

अब दरकार नहीं तुम्हारी

छोड़ अब तुझे जाना है

आशियाँ नया बसना है

संग तेरे जो पल बिताएं

यह उदासी उन्ही यादों का साया है

ख्वाहिसे

जिन्दगी कभी इतनी कम लगती है

खुद से शिकायत करती है

एक पल नसीब नहीं

खुद को जीने के लिए

ढल गयी जिन्दगी

औरों को खुश रखने में

सफ़र के इस पल में

मिली ना फुर्सत एक पल के लिए

अधूरी रह गयी ख्वाहिसे

दफ़न हो गयी शिकायतें

किताब

किताब जिन्दगी की रंगीन थी

पर वो किताब अधूरी थी

कुछ पृष्ट रिक्त थे

चाह कर भी जिनमे रंग ना भर पाया

मुस्कराहट के पीछे छिपे आंसुओ को

शब्दों में वयां ना कर पाया

किताब के ह़र पन्ने को भर ना पाया

अत्याचार

अत्याचार सहने की इंतहा हो गयी

जुबाँ जो अब तलक खामोश थी

एकाएक बोल उठी

इस कदर ढाये तुमने जिल्मों सितम

नफरत की चिंगारी

सीने में धधक उठी

आवेश के आगोश में

चिंगारी शोला बन आँखों से फुट पड़ी

ह़र दरों दीवार तोड़ बोल चीख पड़ी

अब ना अश्रु बहेंगे

ना जुलोम सितम सहेंगे

सबक ऐसा देंगे

खुद अपने आपसे नफरत करने लगेंगे

पहचान

कांटे गुलाब की पहचान है

घटाएं बारिस का आगाज है

धड़कने दिल का पैगाम है

बुरे वक़्त ही सच्चे दोस्त की पहचान है

पल

कुछ पल तनहाइयों में गुजर गए

कुछ पल प्यार समझने को गुजर गए

जो पल बचे वो सिकवा शिकायत में गुजर गए

पर आंसू बहाने को

खुद को एक पल भी ना मिला

तलाशते रहे जिस पल को

वो पल कभी ना मिला

Wednesday, July 4, 2012

दृष्टिहीन समाज

दृष्टिहीन समाज हमारा

सुरसा की तरह बड़ रही

सवालों की छाया

फैला अँधियारा दूर तक

दिग्भ्रमित हो

भटक रहे नौ निहालों के कदम

गर्त समा रही चेतना सारी

स्वार्थ भावना से

संसय बनी कमजोरी हमारी

इस काल चक्र ने

बदल दिया सम्पूर्ण रूप

विभस्त हो गया समाज का स्वरुप

विभस्त हो गया समाज का स्वरुप

Tuesday, July 3, 2012

मिथ्या जग

मिथ्या जग सारा

बनावटी मुखोटा सारा

मुखोटे में छिपी मोह माया

दूर तक नहीं सत्य का साया

मिथ्या जग सारा

तन भी नश्वर

भस्म है ईश्वर

सत्य सिर्फ मौत का साया

बाकी मिथ्या जग सारा

Monday, July 2, 2012

एक सवाल

मुझसे जिन्दगी इतनी नाराज क्यों है

खफा खफा सी ह़र बात क्यों है

बार बार ह़र बार

शिकस्त ही क्यों इस नसीब में है

आखिर क्या वो बात है

कीया सारा बेकार है

नीरस हो निराश हो गयी जिन्दगी

अब तो ह़र बात एक नया व्यवधान है

जिन्दगी मेरे लिए

इम्तिहान से ज्यादा एक सवाल है

Monday, June 25, 2012

किनारा

किनारा तलाशते ना जाने किधर बह आया

तेज बहाव ना जाने किस ओर खिंच लाया

अथाह सागर में डूबता अकेला नज़र आया

मीलों दूर तक ना कोई तट नज़र आया

किनारा तलाशते ना जाने किधर बह आया

अधूरी बात

कई बार कई बात अधूरी रह जाती है

जुबाँ पे आते आते बात रुक जाती है

लफ्ज कहीं फिसल ना जाये

सुनके जिसे जिन्दगी कहीं ठहर ना जाये

वो बात कहने से जुबाँ कतरा जाती है

इस उल्फत में जो बात अधूरी रह जाती है

जीवन भर का दर्द वो दे जाती है

कई बार कई बात अधूरी रह जाती है

Monday, June 18, 2012

रोती आँखे

आज भी आँखे रोती है

भरे रहते है नयन

याद आती है जब कभी

बीते लहमों की

छलछला आते है नयन

बह चला आता है सैलाब

तोड़ सब्र का इम्तिहान

तोड़ सब्र का इम्तिहान

Sunday, June 17, 2012

नींद

नींद जब किश्तों में बंट जाती है

रातें करवटें बदलते गुजर जाती है

सपने देखना दूर की बात

चैन भरी नींद को

आँखे तरस जाती है

नींद जब किश्तों में बंट जाती है

आलम उस पल ऐसा होता है

नींद के सिवा अपना ना कोई दूजा होता है

चाँद तारों कर साथ भी अधूरा लगता है

सकून भरी नींद के लिए

तन जब करवटें बदलता है

तन जब करवटें बदलता है

नींद जब किश्तों में बंट जाती है

रातें करवटें बदलते गुजर जाती है

नींद जब किश्तों में बंट जाती है

प्यार की डोर

बंधी है जिससे दिलों की डोर

प्यार की है वो डोर

दूर होते हुए भी

महकती है जिससे साँसों की डोर

प्यार की है वो डोर

निहारती है आँखे जिसे ओर

प्यार की है वो डोर

वो याद

धुंधलाती वो याद

मानस पटल पर उभरती मिटती छाप

अंगडाई लेते गुजरे कल के खाब्ब

ले आती वही

छानी थी जीन गलियों की ख़ाक

पड़ गयी समय की धुल

यादों के जीन पन्नो पर

बन गयी वो भूली बिसरी बात

धुंधला गयी वो याद

याद जब कभी आती है

गुजरे पल की बात

मानस पटल पर उभर आती है कोई छाप

पर धुंधला जाती है वो याद

वो याद

Wednesday, June 13, 2012

मातृभूमि

जिस मट्टी में मिली हो खुशबू बचपन की

झलकती है वो स्वाभिमान में

महकती है फिजायें बहती है हवाएं

लहराती है यादें जब दिलों के पास में

मातृभूमि है ए वो

जीते मरते है जिसके लिए शान से

अंत समय गुजरे उसकी बाहों में

ख़ाक हो जाये जीवन उस मट्टी में

जिस मट्टी में मिली हो खुशबू बचपन की

Monday, June 11, 2012

यादों का सफ़र

क्या हुआ जो साथ नहीं

कशीश फिर भी पास है

जुदा जिस्म हुए

दिल तो लेकिन पास है

फिर कभी मुलाक़ात हो या ना हो

जीन के लिए

यादों का सफ़र साथ है

यादों का सफ़र साथ है

फिर से

इन्तजार था यार का

तपस्या थी प्यार की

वो आएगी फिर से

ऐतबार था दिल पे

नाम लिखा जिसका इन साँसों पर

इन्तजार रहेगा उनका आखरी पल तक

बिन मिले यार से

जुदा ना हो पाएगी रूह जान से

वो आएगी फिर से

कह रही धड़कने बाकी

सफल होगी आरधना सारी

मिलेगा प्यार फिर से

तड़प

नैन ढूंढे ऐसे तुझे

जिस्म से रूह जुदा हो गयी जैसे

तड़प रहा हु ऐसे

खो गयी हो साँसे कहीं जैसे

सूनी हो गयी आँखे ऐसे

पत्थर की मूरत हो कोई जैसे

खामोश हो गए लब ऐसे

खो गए लफ्ज कहीं जैसे

नैन ढूंढे ऐसे तुझे

जिस्म से रूह जुदा हो गयी जैसे

नैन ढूंढे ऐसे तुझे

Thursday, June 7, 2012

क्यों

अजनबियों से तुम क्यों लग रहे हो

क्या राज है जो दिल में छुपा रहे हो

है जिस शरमों हया के मुरीद हम

वो हमसे क्यों चुरा रहे हो

क्या बात है तुम नजरे बचा रहे हो

क्यों खिले गुलाब को मुरझा रहे हो

अजनबियों से तुम क्यों लग रहे हो

Saturday, June 2, 2012

कहकहे

कहकहों में ग़मों को भुला दूँ

हँसती रहे बस जिंदगानी

बेफिक्री में जिन्दगी लुटा दूँ

दिल जो एक बार मुस्कादे

ग़मों के बादल छटा दूँ

जिन्दगी बस जिंदादिल बनी रहे

कहकहों में ग़मों को भुला दूँ

Friday, June 1, 2012

दर्द की जुबां

काश मैं अपने दर्द को जुबां दे पाता

दर्द आखिर होता क्या है

ए खुदा तुमको भी ए बतला पाता

जो गम समेटे इस छोटे से दिल में

उनसे रूबरू तुमको भी करवा पाता

काश में अपने दर्द को जुबां दे पाता

जीन आँखों से आंसुओ ने भी नाता तोड़ लिया

उन सूनी आँखों कर दर्द तुमको दिखला पाता

अपने बिखरे सपनों के रंग तुमको वयां कर पाता

काश मैं अपने दर्द को जुबां दे पाता

Monday, May 28, 2012

उदासी

लग रहा गुलाब उदास है

मुरझाया कुम्हलाया जैसे खाब्ब है

गरज गरज बरस रहा अम्बर

जैसे करुण रुदन की पुकार है

घिर गया दिन में अंधियारा

जैसे सूर्य ग्रहण की छावँ है

बिखर गया ह़र रंग

जैसे कोई सूनी मांग है

लग रहा गुलाब उदास है

लग रहा गुलाब उदास है

मोम

तराशने लगे जब हाथ

पिघलने लगे पत्थर भी

जैसे मोम पिघल जाये

पा हुनर भरा हाथ

निखर आयी पत्थर की मूरत

बदल गयी किस्मत

जैसे बेजान जिस्म में

प्राण चले आये

Friday, May 25, 2012

नंगे कदम

सूरज की तपिश तन झुलसाए

पैरों में छाले पड़ते जाये

मंजिल कहीं पीछे ना छुट जाये

नंगे कदम दौड़ा चला जा रहा हु

कांटे पत्थर चुभते जाये

लहुलुहान जिस्म होता जाये

कदम कहीं थक ना जाये

नंगे कदम दौड़ा चला जा रहा हु

पाने को आतुर

छूने को व्याकुल

करने सपने को साकार

नंगे कदम दौड़ा चला जा रहा हु

Thursday, May 17, 2012

कहानी

गुजरे कल की कहानी है

सपनो में ढली जिंदगानी है

धुन ना जाने क्या थी

मस्ती से सराबोर थी

रुकते नहीं कदम थे

मचलते रहते अरमान थे

जादू  में लिपटी

जैसे लय और  ताल थी

जीवन संगीत और गीत भरी धड़कने

रूह की जान थी

सपनो में ढली वो जिंदगानी थी




Wednesday, May 2, 2012

सवाल

संभव  नहीं हर सवालों के जवाब 

टटोल नहीं पाते  हर पल दिल की बात 

कभी कभी इसलिए अधूरी रह जाती है तलाश 

ओर बन जाती है जिन्दगी खुद एक सवाल 

किरण

सुबह की किरण नई सौगात ले आयी

जैसे खुशियों की बारात चली आई

चहक उठा मन झूम उठा तन

प्रभात बेला संदेसा नया ले आई

था जिसका इन्तजार

लो वो बेला चली आई

रोशनी की एक किरण

जीवन में नया उज्जाला ले आई

सुबह की किरण नई सौगात ले आयी

जैसे खुशियों की बारात चली आई

Tuesday, May 1, 2012

यादों का मेला

ले आया वक़्त वहाँ

यादों का मेला लगा था जहाँ

बीनने लगा यादों के गुल

खिलने लगे गुजरे कल के फूल

संजोने यादों का सफ़र

वक़्त ने दी थी दस्तक

चुन चुन यादों के फूल

समेटने लगा भूली यादों के गुल

मिल गया जैसे कोई बिछुड़ा अपना

रो पड़ा दिल

जैसे सच हो गया कोई सपना

एक पल को थम गया वक़्त हमारा

मिल गया बचपन

खो गया था जो जाने कहीं

छुड़ा हाथ हमारा

ले आया वक़्त वहाँ

यादों का मेला लगा था जहाँ

रूह

गुजरा बचपन जीन गलियों में

रूह बस्ती है उन पगडंडियों में

बात उस शहर की थी बड़ी निराली

हार पेड़ पोधो से थी पहचान हमारी

गली मोहलो की थी शान निराली

हँसी ठिठोली में गुजर जाती थी शाम सुहानी

खुले आसमां तले

तारे गिन गिन

सपनों में खो जाती थी रात सयानी

बस गयी इन सबों में रूह हमारी

गुजर गया बचपन

छुट गया शहर संगी साथी

पर रह गयी यादें वही कही भटकती

रूह बस्ती है इनमे जैसे हमारी

मीठी बातें

अधखुली पलकें

मंद मंद मुस्काती साँसे

कह रही शरारत निगाहें

खामोश लव

ठंडी आहें

कर रही दिल की बातें

देख खिलते गुलाब को

याद आ गयी

प्रियतम की वो मीठी बातें

भागा

मैं जो भागा आया

दुनिया पीछे छोड़ आया

वक़्त निकल ना जाये आगे

मैं रह ना जाऊं पीछे

पकड़ी रफ़्तार ऐसी

समय से आगे निकल आया

मैं जो भागा आया

दुनिया पीछे छोड़ आया

पल में

खबर मरने की आयी

अर्थी फूलों से सज गयी

राम नाम की धार बह गयी

चिता अंगारा बन गयी

मुक्त आत्मा हो गयी

जिन्दगी पल में राख हो गयी

Tuesday, April 3, 2012

संतुष्टि

खुशियाँ इतनी मिली दर्द से नाता जोड़ लिया

गुलाब बन काँटो के संग रहना सीख लिया

ह़र गमों को मुस्कराते हुए जीना सीख लिया

अरमानों कर अम्बार लगा था

चाहतों से स्वाभिमान बड़ा था

जो मिला

हँसी खुशी उसमे बसर करना सीख लिया

खुशियाँ या गम , कम हो या ज्यादा

ह़र उस पल को

आत्मसंतुष्टि संग जीना सीख लिया

गुलाब बन काँटो के संग जीना सीख लिया

Monday, April 2, 2012

कुछ

कुछ टटोल मैं रहा हु

आंसुओ का सागर समेट रहा हु

उस अनछुई खुशी को

पहेली बन ऊलझ गयी जो

अन्दर अपने टटोल रहा हु

कुछ टटोल मैं रहा हु

आंसुओ का सागर समेट रहा हु

मिल जायेगी जो मृगतृष्णा

भर आयेगे ऐ दो नयना

उस पल छलकाने खुशियाँ

इस पल समेट रहा हु आंसुओ का झरना

कुछ टटोल मैं रहा हु

आंसुओ का सागर समेट रहा हु

कुछ मैं टटोल रहा हु

Monday, March 19, 2012

श्रद्धांजलि

ले आँखों में पानी

हाथों में फूल

श्रद्धांजलि अर्पण करे

आपकी आँखों के नूर

छिटक रही यादों की रोशनी 

कह रहे दिलों के बोल

ह़र जन्म बंधी रहे

अपने साँसों की डोर

Friday, March 16, 2012

रूमानी शाम

लुट गए रंग

उस रूमानी शाम

दीदार हुए जब चाँद के

छलक गए नयनों के जाम

लुट गए रंग

उस रूमानी शाम

शबनम में जैसे लिपटा गुलाब

चुरा ले गया दिल के तार

फ़िदा हो गयी मोहब्बत

निखर गयी चहरे पे मुस्कान

लुट गए रंग

उस रूमानी शाम

सुन झनझन झांझर की झंकार

छन छन चूड़ियों की खनकार

मचल गए दिल के अरमान

लुट गए रंग

उस रूमानी शाम

Wednesday, March 14, 2012

अधूरे अहसास

कुछ अहसास अधूरे रह जाते है

टूटती है निंद्रा

सपने बिखर जाते है

कुछ अहसास अधूरे रह जाते है

संग कोई चलता नहीं

तन्हा अकेले खड़े रह जाते है

कुछ अहसास अधरे रह जाते है

धडकनों का क्या

साँसे गिनने को

दिन भी कम रह जाते है

कुछ अहसास अधूरे रह जाते है

बिखराव

समय जैसे ठहर गया

निंद्रा जैसे कोई चुरा ले गया

सपने जो बिखरे

मायने जिन्दगी के बदल गये

ऐतबार तो अब खुद पे भी ना रहा

लाख मिन्नतों के बाद

गला खुदा तुने अरमानों कर घोंट दिया

भाग्य उदय

होगा भाग्य उदय

मुझ बदनसीब कर भी

लगा सर पे तिलक

ली है ए शपथ

लिखूंगा तक़दीर ऐसी

देखते रह जायेगा खुद विधाता भी

Saturday, March 10, 2012

फूल

छुप गया फूल झुरमुट के नीचे

नज़र ना लगे किसीकी

ओझल हो गया नजरों से ऐसे

प्रात: जब माली लगा कतरने झुरमुट

खिल उठा फूल कर रंग रूप

देख इस सौंदर्य नज़ारे को

निखर गया दिवाकर कर नूर

Tuesday, March 6, 2012

बदली दुनिया

पल में दुनिया सारी बदल गयी

वो मासूमियत वो बचपन

जाने कहा खो गयी

लहर दर्द की जो उठी

संग अपने खुशियाँ सारी बहा ले गयी

छुट गया लड़क्पन कही

अब तो वो याद भी नहीं

पल में दुनिया सारी बदल गयी

Sunday, March 4, 2012

पहचान

एक अनजानी तलाश

गुमनामी में डूबी पहचान

अस्त हो गया साया

छोड़ अक्स का साथ

तलाश रही खामोश नजरे

अँधेरे में एक लौ की आस

कह रहा मन बेकरार

खुल जाये किस्मत के द्वार

धैर्य की कुंजी अगर लग जाये हाथ

तलाश रही धड़कने

खोयी साँसों के तार

पर बिखर गयी जिन्दगी

ओर गुम हो गयी पहचान

Monday, February 20, 2012

मुराद

इस आस में अटकी है सांस


कभी तो पूरी होगी दिल की मुराद


बड़ी नाजुक है ए आस


डर लगता है कही पूरी होने से पहले


बिखर ना जाये साँसों के तार


यकीन है खुद को


एक दिन पूरी होगी दिल की मुराद


बस इसी आस में अटकी है सांस

यथार्थ

आंसुओ का मोल खुदा तुम समझ ना पाये

रुदन में लिपटी फ़रियाद तुम समझ ना पाये

दिल पुकारता रहा

आत्मा चित्कारती रही

पर इन बेबस आँखों का दर्द तुम समझ ना पाये

सहेजा था जिन आंसुओ को कभी

दफ़न हो गयी उसमे कही करुण पुकार

फिर भी खुदा तुम समझ ना पाये

इन अनमोल आंसुओ का यथार्थ

Saturday, February 18, 2012

बंजर भूमि

बंजर भूमि सावन को तरसे

कण कण पानी को तरसे

बादल छाये पर मेघा ना बरसे

खो गयी वो बसंती बहार

गुम हो गयी वो कोयल की पुकार

तरस रही धरती बूंद बूंद को

कर रही मेघों का इन्तजार

कर रही मेघों का इन्तजार

Thursday, February 16, 2012

किश्त

जिन्दगी किश्तों में बंट गयी

हसरतें ख़्वाईसे

नगद उधार की मोहताज हो गयी

मायने जिन्दगी के बदल गए

ना दिन ना रात

ना धूप ना छावँ

किश्तें गिनते गिनते

ना जाने कब सूद के बदले

साँसे भी उधार हो गयी

ओर अब तो जिन्दगी के संग संग

साँसे भी किश्तों में बंट गयी

राम नाम

मंदिर है संगीत

भक्ति है गीत

प्रार्थना है आरधना

भक्त है रघुवीर

रघुवीर करे आराधना

बजे कण कण में राम नाम का गीत

Tuesday, January 31, 2012

दिल कर डर

खुदा तुने इस सीने को जख्म इतने दीये

दिल अब तुझसे दुआ करने से भी डरता है

खंजर तुने पीठ में ऐसे उतारे

अब तेरी चौखट चढ़ने से भी दिल ए डरता है

जाने आज तलक खफा तू क्यों है

अब तो तुझको अपना कहने से भी दिल डरता है

सूनी नज़र

जी जिन्दगी जीन सपनों के संग

बिखर गए वो इन्द्रधनुषी रंग

करवट ली समय ने ऐसे पल

सपने सच होने से पहले

लग गयी बेदर्द जमाने की नज़र

टूट गए सपने

सूनी रह गयी नज़र

पत्थर

जब से इन चंचल नयनों के खाब्ब लूटे

पत्थर की मूरत ए बन गए

शोख सुन्दर लफ्ज

खामोश ऐसे हो गए

लब मानो किसी ने सी दीये

यादों की महक

जहन में बैचैनी

मष्तिश्क पे जोर

फिर भी याद नहीं रही

वो कल्पना की खोज

यादों के भंवर को

शायद लग गयी हो नज़र

या धूमिल पड़ गयी हो
यादों की महक

क्या से क्या

सपनों के पतंग की डोर कट गयी

जिन्दगी क्या से क्या हो गयी

लुट गयी अरमानों की दौलत

मोहताज जिन्दगी जीने को हो गयी

सपना साकार

मुस्का रहा था खाब्ब

शरमा रहा था चाँद

पहली पहली थी मुलाक़ात

उलझ रही थी सांस

प्यार तलाश रही थी आँख

थामा जो सनम कर हाथ

बज उठे दिल के तार

मिल गया प्यार

हो गया सपना साकार

पनघट

पनघट की छटा निराली

कुंए में पानी पानी में गागरी

सर पे मटके कमर के झटके

चले जब पनिहारन उछले गागरी

खनके चूडियाँ बाजे झांझर वावरी

शर्माए घूँघट में पनिहारनी

फुट जाये जब सर पे रखी गागरी

Saturday, January 7, 2012

ख़ामोशी

तलाशी जिन्दगी जहा

मिली मुर्दों की कब्र वहा

मरघट की सी ख़ामोशी

परसी थी वीरानगी वहा

सिरहन रही थी आँखे

उखड रही थी साँसे

भयावह मंजर ने

फैला रखी थी जैसे बाहें

कह रही हो जैसे

छोटी सी होती है जिंदगानी

पर बड़ी सी होती है रातें

Friday, January 6, 2012

चंचल हिरनी

ओ चंचल हिरनी

मस्त पवन सी तेरी चाल

छा जाये बसंती फुहार

सुन तेरी पायल की झंकार

ओ रे मस्त मोरनी

नाचे मन वावारा

लहराए आँचल तेरा

चले जब तू हिरनी सी चाल

ओ स्वर कोकिला

सुन तेरी कूहू कूहू पुकार

झूमे दिल पपहिया

बाजे दिल के तार

ओ मस्त मोरनी

हिरनी सी तेरी चाल

हसीन शाम

जिन्दगी के एक मुकाम

मिली थी एक हसीन शाम

सबसे जुदा सबसे हसीन

उसमे थी कुछ ख़ास बात

आज भी तरोताजा है दिल में

उस तारों भरी रात की बात

ढल गयी थी रात

छुप गया था चाँद

जीने के लिए

इतना सा ही काफी था

उन बीते लहमो का साथ

जिन्दगी के एक मुकाम

मिली थी एक हसीन शाम

जवाँ प्यार

घटती उम्र की नहीं

बड्ती उम्र की निशानी है प्यार

उम्र की ह़र दहलीज पे

सपनों की रवानगी है प्यार

ढलती उम्र में

गुजरे कल की निशानी है प्यार

साक्षी है इतिहास

उम्र की नहीं

दिलों की दीवानगी है प्यार

शायद इसीलिए

ढल जाती है उम्र

जवाँ हो जाता है प्यार

पिता की याद

स्वीकार कर श्रद्धा के फूल

करदो आस हमारी पूर्ण

आशीर्वाद आपका संग रहे सदा

जैसे यादों के चिराग रोशन रहे सदा

बंधन

तेरी घनी जुल्फों में छुप जाऊ

या तेरी सुनहरी आँखों में कैद हो जाऊ

दिल पर यह कह रहा है

आँचल बन तेरे सीने से लिपट जाऊ

कभी जुदा ना हो सके

उस प्यारे से बंधन में बांध जाऊ

भाना

आँखों की वो भाषा

हाथों का वो इशारा

भा गया दिल को

जानेमन तेरे प्यार का तराना

किस्मत का सितारा

फिजा की महक बन जाऊ

खाब्बों के रंग बन जाऊ

आँखों की नींद बन जाऊ

मिल जाये प्यार सच्चा तो

दिल के अरमान बन जाऊ

माथे की बिंदिया बन जाऊ

पूजा की थाल बन जाऊ

तुम जो चाहो तो तेरे इश्क में

देवदास बन जाऊ

मजनू बन जाऊ

दीवाना बन जाऊ

तू जो कह दे तो

तेरा सिंदूर बन जाऊ

तेरा चाँद बन जाऊ

तेरी किस्मत का सितारा बन जाऊ

क्षण दो क्षण

प्रकृति की गोद में बैठ

क्षण दो क्षण कुदरत निहारु

उदभव उदय उत्सर्ग निहारु

चंचल सौम्य स्वरुप निहारु

बदल रही घटाओं में

अंकुरित हो रहे नये बीज निहारु

इस रमणीय हसीन नजरे को संजो रखने

प्रकृति की गोद में बैठ

क्षण दो क्षण कुदरत निहारु