Tuesday, December 7, 2010

ठिकाना

ना ठोर है ना ठिकाना है

जहा मिल जाये आसरा

वो बसेरा सपना है

ह़र रोज एक नया सबेरा है

छोटे से इस जीवन में

ना कोई अपना है

ना कोई पराया है

जिन्दगी बस ऐसे ही

चलते जाना है

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