Monday, March 29, 2010

खाब्बों में

खाब्बों में ख्यालों में

अक्सर कोई आता है

आके मुझे जगाता है

नगमे नए सुनाता है

ह़र ओर वही नज़र आता है

काश ऐसा होने लगे

सपनों की दुनिया से निकल

आके वो मझसे मिले

चाहत है वो हमारी

अब नहीं दुनिया उस बिन प्यारी

कहने का एक मौका हमको भी दे दे

रखेगें सर का ताज बना कर

चाहेंगे ना किसी ओर को

एक बार सपनों से निकल

आके वो हमसे तो मिल

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