Monday, September 21, 2009

भूल

जाने वो कोन सी घड़ी थी

अनजानी मुसीबत को न्योता दे दिया

लाख कोशिश की निकल आने की

हर राह बंद होती नजर आई

जाने वो कोन सी भुल्भुलाया थी

सिर्फ़ अन्धकार ही अन्धकार नजर आया

यू लगा मानो जैसे

एक तरफ़ कुवा दूसरी तरफ़ खाई है

ध्यान जो रब को किया

उम्मीद फिर नजर आई

नजरे खोली तो देखा

स्वतः ही बाहर निकलने का

मार्ग प्रस्तुत हो चला

वादा किया अब ना एसी गलती दोहराएँगे

शान्ति पूर्वक जीवन गुजार जायेंगे

No comments:

Post a Comment