Tuesday, August 4, 2009

स्नेह भरी गाथा

गाथा है स्नेह भरी

पिता पुत्र की लगाव भरी

हाथ थामे चले जब

हर मुस्किल आसान बनी तब

पिता ने संघर्ष की प्रेरणा का मंत्र दिया जब

सफलता मिली चहु और तब

पुत्र सर पे रखा जो हाथ

पूर्ण हुई अभिलाषा

पूर्ण हुए सब काज

छोड़ पुत्र को आर्शीवाद के संग

पिता पधार गए इश्वर संग

पुत्र करे रुंदन पुकार

एक बार चले आओ मेरे पिता आप

सुन के करुन पुकार

पिता कहे जीना सीखो मेरे बिना आप

तुझे छोड़ कहा जाऊंगा मेरे लाल

तेरी यादो मैं रहूँगा मेरे लाल

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